जैविक कचरे का निस्तारण नहीं,पर्यावरण के जिम्मेदार अपने ही विभाग की नियम प्रणाली को लगा रहे जंक

दुर्ग: एक कहावत है “घर को आग लगी घर के चिराग से”इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है पर्यावरण विभाग का चाल और चरित्र पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने वाले प्रदेश के नर्सिंग होम और क्लीनिक संचालकों पर पर्यावरण संरक्षण मंडल मेडिकल वेस्ट खपाने को लेकर पूरी तरह मेहरबान नजर आ रहा है। शासन और एनजोटी के निर्देशानुसार हर ऐसे उद्योग धंधे,नर्सिंग होम या क्लीनिक इन सभी के खुलने से पहले पर्यावरण विभाग द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य है, इसके बाद ही इन्हें कार्य प्रारंभ करने की अनुमति दी जाती है,लेकिन देखा ये जा रहा है,की एनओसी की आड़ में पर्यावरण विभाग के अधिकारी और छोटे कर्मचारी भारी-भरकम उगाही कर रहे हैं। बड़े अधिकारी को इसकी भनक तक नहीं लगती,छोटे कर्मचारी या अधिकारी संबंधित संस्थान में कोई ना कोई कमी बताकर और उसके द्वारा जमा किए गए आवेदन में भी कमी बताकर प्रकरण को रोक देते हैं, और मनमाने रुपए वसूलते हैं। पर्यावरण विभाग द्वारा नर्सिंग होम और अस्पतालों की मॉनिटरिंग नहीं की जाती है जिसका फायदा नर्सिंग होम वाले उठा रहे हैं नर्सिंग होम में निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाना आवश्यक कर दिया गया है।जोकि एनओसी देते वक्त ही बता दिया जाता है, की यह प्रक्रिया अनिवार्य नियमों में शामिल है,लेकिन नियम कायदों के उल्लंघन करने के बावजूद पर्यावरण संरक्षण मंडल के कर्मचारी इन सब बातों का अनदेखी कर रहे हैं।जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है अस्पतालों और क्लीनिक से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह है।अस्पताल और क्लीनिक संचालकों के लिए भले ही मामूली कचरा होता है लेकिन जनमानस और अन्य जीव-जंतुओं के लिए ये जहर की पुड़िया यानी मौत का सामान है। इन कचरो से पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचता ही है, लोगों को इन्फेक्शन,एचआईवी, महामारी हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारियां भी होने का अंदेशा बना रहता है। लेकिन चंद पैसों के लालच में पर्यावरण संरक्षण मंडल के कर्मचारी इन सब पर ध्यान नहीं देते मेडिकल वेस्ट निजी और सरकारी दोनों अस्पतालों से निकलता है। लेकिन पैसों के लालच में वहां से स्टाफ इन जैविक कचरे को कबाड़ियों को बेच देते हैं।इसके अलावा कई निजी अस्पताल इस कचरे को आसपास के खुले जगह या नालो में डाल देते हैं। और वहां से कचरा कबाड़ियों तक पहुंच जाता है कबाड़ में कुछ ऐसी सामग्री भी होती है जैसे कि सीरिज, टेबलेट की शीशियां, प्लास्टिक डिप या कई अन्य ऐसी भी सामग्री है जिस के संपर्क में आने से इंसान गंभीर बीमारी की चपेट में आ सकता है। पर्यावरण विभाग के उच्चअधिकारी को इन सब की जानकारी नहीं होती,कचरो के वजह जमीन की उत्पादकता जहरीली होने से सब्जियों और अनाज पर भी पड़ता है, शहर के आसपास सब्जी और अनाज भी बहुत मात्रा में उगाये जाते है उसका असर भी इनके उत्पादन और क्वॉलिटी पर भी फर्क पड़ता है।

लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

नर्सिंग होम से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को सही तरीके से नष्ट करने के लिए पर्यावरण निरीक्षक की जिम्मेदारी होती है। लेकिन पर्यावरण विभाग के निरीक्षक इन सब बातों पर ध्यान नहीं देते,हालांकि नेशनल गीन टिब्यूनल ( एनजीटी ) की सख्ती के बाद मंडल ने पहली बड़ी कार्रवाई की थी शहर के कुछ नर्सिंग होम पर कार्यवाही करते हुए उन पर जुर्माना भी लगाया गया था कारवाही को पर्यावरण क्षतिपूर्ति का नाम दिया गया था लेकिन सवाल यह उठता है कि पर्यावरण संरक्षण मंडल के होते हुए पर्यावरण क्षति होना ही नहीं था। जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जिन अस्पतालों पर जुर्माना लगाया गया था उसमे कुछ बड़े और सरकारी अस्पताल भी शामिल थे। पर्यावरण क्षतिपूर्ति को आधार बनाकर विभागीय कर्मचारी अस्पताल और क्लीनिक में बेड के अनुसार रेट तय करते हैं। जितना बड़ा अस्पताल इतना ज्यादा पैसा, विभाग के उच्चअधिकारियों को इसे संज्ञान में लेकर संबंधित कर्मचारियों पर बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

निजी व सरकारी अस्पताल दोनों ही पर्यावरण का कर रहे-अनदेखी

पर्यावरण की अनदेखी और नियमों का उल्लंघन निजी व सरकारी अस्पताल दोनों कर रहे हैं।हालांकि पर्यावरण संरक्षण मंडल मेडिकल वेस्ट के डिस्पोजल को लेकर लापरवाही बरतने वाले अस्पतालों को नोटिस जारी किया था और समझाइश भी दिया गया था लेकिन पर्यावरण संरक्षण मंडल के कर्मचारियों की मिलीभगत से चलते संचालकों ने ध्यान नहीं दिया जिसकी सजा आमजन भुगत रहा है। ध्यान नहीं देने वाले अस्पताल संचालकों पर मंडल की सख्त कार्यवाही की चेतावनी जरूर देते हैं। लेकिन यह सख्ती बाद में नरमी में बदल जाती है।

इन नियमों का कड़ाई से होना चाहिए पालन……..

1• सभी अस्पतालों को अपने संस्थानों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को लेकर सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसी से अनुबंध करना होगा भले ही हस्पताल 10 बिस्तर से कम का भी क्यों ना हो।

2•अस्पतालों से निकलने वाले मल – मूत्र , खून और अन्य केमिकल को सीधे नाले- नालियों मैं ना बहाकर टीटमेंट करके बाहर जाने का प्रावधान किया गया है इसके लिए अस्पताल को तत्काल सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट ( एसटीपी ) लगाने के निर्देश दिए गए हैं।

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