यहां नक्सल साए में लगती है पाठशाला:नदी-नाले पार कर 7 किमी पैदल चलते हैं शिवचरण और सुधीर नाग, क्योंकि शिक्षा से ही बदलाव संभव

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अमरेंद्र सिंह

छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित जिला बीजापुर। यहां से करीब 36 किमी दूर जारगोया और पदमोर गांव पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में है। यहां सड़कें नहीं है, स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा भी नहीं फहरता, लेकिन काले झंडे के नीचे पाठशाला जरूर लगती है। शिक्षक दिवस पर ऐसे दो टीचरों शिवचरण पांडेय और सुधीर नाग की कहानी, जो रोजाना यहां बच्चों को पढ़ाने पहुंचते हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि शिक्षा से ही बदलाव संभव है।

जिले के जारगोया और पदमोर गांव तक पहुंचना आसान नहीं है। शिक्षकों को इसके लिए रोजाना अपनी जान जोखिम में डालनी होती है। घर से शिक्षक शिवचरण पांडेय और सुधीर नाग बाइक से पहले कामकानार गांव तक पहुंचते हैं। फिर 2 किमी पगडंडी पर पैदल चल कर उफनती हुई बेरुदी (मिंगाचल) नदी के किनारे पहुंचते हैं। यहां शिक्षक अपने कपड़े उतारकर बैग में रखते हैं और बैग सिर पर रख उफनती नदी पार करते हैं।

इनके जैसे 12 प्राइमरी स्कूल के टीचर, जो रोज पार करते हैं नदी
दरअसल, बेरुदी नदी के दूसरी ओर 25 से अधिक छोटे-बड़े गांव-कस्बे हैं। इनमें बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। बीजापुर से गांव तक आने-जाने के लिए नदी पार करनी ही पड़ती है। शिवचरण और सुधीर जैसे ही 12 प्राइमरी स्कूलों के शिक्षक रोजाना बाइक से कामकानार गांव पहुंचते हैं। हालांकि इसके बाद सुधीर को जारगोया स्थित स्कूल तक पहुंचने के लिए 25 मिनट जंगल का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ता है।

नक्सली झंडे के नीचे राष्ट्रगान से होती है पढ़ाई की शुरुआत


ये 54 साल के शिक्षक (हेड मास्टर) शिवचरण पांडेय का जज्बा ही है, जो नक्सली काले झंडे के नीचे राष्ट्रगान से कराते हैं। पदमोर के जिस स्कूल में शिवचरण पढ़ाते हैं, वो जारगोया से महज 5 किमी दूर है, लेकिन इस दूरी को तय करने में एक घंटे लगते हैं। पांचवी तक के इस स्कूल में 58 बच्चे पढ़ते हैं। पहले उन्हें गोंडी फिर हिंदी में पढ़ाया जाता है। यह नदी पार का पहला स्कूल है, जहां स्मार्ट क्लास है। नक्सलियों ने स्कूल परिसर में काला झंडा फहराया था। यहीं पर नक्सलियों के स्मारक भी बने हैं।

1-1 शिक्षक के भरोसे स्कूल


नदी पार के स्कूलों में छात्र संख्या कम है। इसकी वजह प्राइमरी स्कूल में 1 शिक्षक का होना। स्कूलों में एक शिक्षक 5 कक्षाओं को एक साथ पढ़ाते हैं, क्योंकि विभाग नियुक्ति ही नहीं करता। असर यह है कि पालक बच्चों को या तो स्कूल नहीं भेजते, और भेजते हैं तो पांचवी के बाद आगे पढ़ा नहीं पाते क्योंकि नदी सबसे बड़ी बाधा है। यही वजह है कि गांव की 50 प्रतिशत आबादी अशिक्षित है। हमें 2 गांव में 5 लोग ही 12वीं पास मिले।

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