जो सबकी कटिंग करते रहे, आज उनकी ही कटिंग हो गई.. अब उस कटिंगबाज की खोज में अमला
भिलाई. तीन दिन पहले सूबे के एक कद्दावर के अवतरण का समारोह चल रहा था. सो उनके बंगले पर बधाई देने वालों का तांता लगा था. एेसे में बधाई देने में हमारे पुलिस महकमे के कर्मी से लेकर अधिकारी भी कैसे पीछे रह सकते थे, सो एक से एक धुरंधर जन्मोत्सव की बधाई देने पहुंच गए. इस बीच न जाने किसी की उत्सव पर नजर लग गई। लपकागिरी करने वाले भी सूट-बूट पहनकर समर्थक और प्रशंसक बन शामिल हो गए. लेकिन समारोह में आने का उनका तो अगल ही मक्सद था. उनका उद्देश्य तो लपकागिरी का था सो अपने काम जुट गए. इस बीच उन्होंने एेसे साहब लोगों की भी कंटिंग कर ली, जो महकमे में रसूखदार पद पर आसीन थे. जब तब उन साहब लोगों को अपने साथ कटिंग होने का अहसास हुआ. तब तक कटिंगबाज महफिल से फुर्र हो गए. एेसे में रसूखदार साहब खुद कटिंग का शिकार हो गए, ये की बात किसी को बताए तो कैसे बताए. लेकिन कहते हैं इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता. सो कटिंगबाज साहब के साथ कटिंग की बात कैसे छुपी रह सकती थी. उन्हीं साथी कहते फिर रहे हैं कि जो सबकी कटिंग करते थे, आज उनकी ही कटिंग हो गई.