शासकीय नौकर और पूँजीपतियों के बीच बैठकर लिया गया लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला

दुर्ग जिले में 6 अप्रैल से 14 अप्रैल तक लॉक डाउन लगाया गया था । जिसको दुर्ग जिला कलेक्टर डॉ सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने दिनांक 19 अप्रैल तक कर दी है ! आपको बता दें कि लॉक डाउन के निर्णय के पूर्व दुर्ग जिला कलेक्टर ने विभिन्न वर्गों से चर्चा करने की भी बात कही है ! इसके साथ ही एक बात गौर करने वाली यह है, कि इस लॉक डाउन को पहले की तरह ही यथावत रखा गया है किसी भी वर्ग को छुट नहीं दी गई है !
एक बात समझ से परे है कि देश का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार जो इस कोरोना काल में सभी वर्गों के बीच सबसे ज्यादा रहे है ! जो स्थितियों को सबसे करीब से देख रहे है फिर चाहे वो किसी अस्पताल का मामला हो या मुक्तिधाम का हो या फिर आम जनता का हो अभी सबसे करीब पत्रकार ही है, जो सही मायने में लॉक डाउन की स्थितियों का बखान कर सकते है ! लेकिन जिले के आला अधिकारी किसी भी ऐसे निर्णय की समीक्षा बैठक में पत्रकारों को शामिल करना जरुरी नहीं समझते !
वैसे कोरोना काल का एक वर्ष का अनुभव और अस्पतालों की व्यवस्था को देखे तो कोरोना के बढ़ते संक्रमण से ज्यादा चिंता शासन प्रशासन को मौत के बढ़ते आंकड़ों की होनी चाहिए ! अगर दुर्ग जिले की बात करे तो जिले में करीब करीब 13 हजार लोग कोरोना पाजिटिव होम आइशोलेसन में है, जहा से बड़ी संख्या में रिकवरी के आंकड़े सबके सामने है ! जिससे एक बात तो आसानी से समझ में आती है कि सही खानपान से आप कोरोना को मात दे सकते है, हम बचपन से सुनते आये कि खाली पेट तो दवा भी काम नहीं करती है ! अगर जिले के सभी कोविड अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर निगरानी कर ली जाए तो यह बात प्रमाणित भी हो जायेगी ! जो खाना कोविड वार्ड में रखा जा रहा है वो मरीज नहीं खा पा रहे है, फिर चाहे वो खाने में गुणवत्ता ना हो या फिर बीमार व्यक्ति का खाने का मन कर रहा हो, लेकिन मौत का बड़ा कारण तो यही है ! इन अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर निगरानी कर ली जाए तो होने वाली मौतों में 90 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है !
लॉक डाउन से बड़ी संख्या में आम जनता प्रभावित हो रही है, लॉक डाउन से उनकी तो मौज है जिन्हें बिना ड्यूटी किये पगार मिल रही है, और वो लोग जिनके पास पैसों की कमी नहीं है उनको कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन हमारे जिले में बड़ी संख्या में लोग फुटपाथों पर धन्धा कर अपना परिवार पालते है, इससे थोड़ा ऊपर चलेंगे तो पता चलेगा की बड़ी संख्या में छोटे दूकानदार भी है जिनकी दुकानदारी से ही उनका परिवार जीवन यापन करता है ! उनसे एक बार चर्चा करेंगे तो समझ आएगा की पेट की आग क्या होती है, इस लॉक डाउन में सड़कों पर भीख मांगने वालों पर शायद ही आपकी नजर गई होगी, जिनको भीख देने वाले हाथ आज अपने घरों में बंद है, उनसे कभी पूछकर देखिये की पेट की आग बड़ी है या कोरोना !
कोरोना काल के दौरान लोगो कोरोना के संक्रमण से बचने इम्युनिटी बढ़ाने की बात तो बहुत की गई फिर इम्युनिटी बढ़ाने वाली सब्जियों और फलों को क्यों प्रतिबंधित किया गया ये समझ से परे है, जबकि कोरोना टेस्ट को लेकर होने वाली भीड़ से कोरोना के फैलने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन उसके बाद भी आपने उसको प्रतिबंधित नहीं किया, जबकि आपने अस्पताल चालु करके रखे है आपको अपील करना चाहिए था की जिस किसी को कोरोना के लक्षण समझ में आये वो अस्पताल पहुचकर अपना कोरोना टेस्ट करवाकर अपना इलाज करवाए ! कोविड के नियमों को लेकर आपको सख्ती दिखानी चाहिए थी, फिर चाहे वो मास्क को लेकर हो या सोसल डिस्टेन्स को लेकर हो ! लेकिन लॉकडाउन कर आपने निचले स्तर के लोगो की कमर तोड़ दी, पिछले साल कोरोना काल के दौरान किसी तरह क़र्ज़ लेकर अपना जीवन यापन किये लोग अभी क़र्ज़ से बाहर नहीं आये थे कि आपने फिर से लोग घर में बैठकर पगार लेने वाले और आपदा को ऑफर समझने वालों के मंशा अनुरूप फिर से लॉक डाउन कर दिया है !