कोरोना के क़हर से बेहाल छत्तीसगढ़, मरीज़ परेशान, अस्पतालों मे शवों के लिए जगह नहीं

छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों के कारण राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है. राजधानी रायपुर में किसी भी अस्पताल में नए मरीज़ों के लिए जगह नहीं है.

28 में से 20 ज़िलों में लॉकडाउन के बीच अस्पतालों के बाहर मरीज़ों की कतार लगी हुई है. एंबुलेंस में, अस्पताल की सीढ़ियों पर, बरामदों में मरीज़ आक्सीजन सिलेंडर लिए बैठे हुए हैं. अस्पताल में भर्ती होने की उम्मीद में साथ आए परिजन दिलासा दे रहे हैं.

गंभीर मरीज़ों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले कर भागते और मिन्नत करते परिजन हर कहीं देखे जा सकते हैं.

शहर की दवा दुकानों में रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए लंबी कतारें हैं.

कोरोना संक्रमण के कारण होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या के कारण राजधानी रायपुर के सबसे बड़े बाबा साहब भीमराव आंबेडकर अस्पताल के शव घर में नए शवों को रखने की जगह नहीं बची है.

शमशान घाट में भी अंतिम संस्कार के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ रही है. राजधानी रायपुर में भी शमशान घाट कम पड़ गए हैं.

कोरोना के कितने मामले?

पिछले साल 30 जनवरी को जब देश में कोरोना का पहला मामला सामने आया, उसके 48 दिन बाद, 18 मार्च को छत्तीसगढ़ में कोरोना का पहला मामला सामने आया था.

29 मई 2020 को राज्य में कोरोना संक्रमण से पहली मौत हुई और उस दिन राज्य में कोरोना के 16 नए मामले सामने आए. 29 मई तक राज्य में सक्रिय कोरोना मरीज़ों की संख्या 314 पहुँच चुकी थी. लेकिन धीरे-धीरे संक्रमण के आँकड़े गहराते गए.

पिछले साल के अंतिम तीन महीनों की देखें, तो अक्तूबर में एकाध अवसर पर नए संक्रमण का आँकड़ा 2900 से ऊपर गया, लेकिन नवंबर के शुरुआती दिनों में नए संक्रमितों की संख्या थोड़ी घट कर 2000 और पहले पखवाड़े के अंत तक 1500 पर आ गई.

लेकिन दूसरे पखवाड़े में आँकड़ा फिर 2284 पहुँच गया. दिसंबर में कुछ दिनों तक आँकड़ा 1500 के आसपास बना रहा

इस साल जनवरी के शुरुआती दिनों में हर दिन एक हज़ार के आसपास नए मामले आए और फरवरी के अंतिम दिन में तो हर दिन नए संक्रमण का आँकड़ा केवल 141 रह गया.

इस साल 7 मार्च को राज्य में 222 नए मामले सामने आए, लेकिन धीरे-धीरे यह आँकड़ा हर दिन बढ़ता चला गया और 3 अप्रैल को 5818 नए मामले आए और 7 अप्रैल को नए संक्रमण का मामला लगभग दुगना होकर 10,310 तक पहुँचा और 13 अप्रैल को 15,121 तक जा पहुँचा.

आज की तारीख़ में महाराष्ट्र के बाद छत्तीसगढ़, भारत में कोरोना का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है. मंगलवार रात तक के आँकड़ों के अनुसार अकेले छत्तीसगढ़ में 1,09,139 सक्रिय कोरोना संक्रमित मरीज़ हैं.

पिछले कुछ दिनों के आँकड़े देखें, तो देश के कुल कोरोना संक्रमित मरीज़ों में, छत्तीसगढ़ के 7 से 8 फ़ीसदी मरीज़ शामिल हैं

देश की आबादी के घनत्व, 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के मुक़ाबले छत्तीसगढ़ में आबादी का घनत्व लगभग आधा, केवल 189 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है.

देश की कुल आबादी का केवल 2.11 फ़ीसदी हिस्सा छत्तीसगढ़ में बसता है

जाहिर है, देश की 2.11 फ़ीसदी आबादी वाले राज्य में, देश के 7-8 फ़ीसदी कोरोना संक्रमितों के दबाव ने सारी स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त कर दी है.

देश में पिछले साल जब कोरोना के मामले आने शुरु हुए थे, तब से लेकर अब तक राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव अपने हर बयान में यह दोहराना नहीं भूलते कि स्वास्थ्य सुविधाओं की अपनी सीमा है और इस कोरोना काल में दुनिया की अच्छी से अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश की व्यवस्था धरी रह गईं.

क्यों बढ़ा कोरोना?

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का कहना है कि छत्तीसगढ़ ही नहीं देश भर में एक बड़ी आबादी ने कोरोना को लेकर लापरवाही भरा रवैया अपनाया.

सिंहदेव कहते हैं, “सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग बरतने, मास्क लगाने और कोरोना से बचने के दूसरे उपाय अपनाने में कोताही बरती गई. जिनमें आरंभिक लक्षण थे, उन्होंने भी समय पर जाँच नहीं करवाई और कोरोना का विस्तार होता चला गया

पिछले कुछ दिनों में कोरोना के सर्वाधिक मामले रायपुर, दुर्ग और राजनांदगांव ज़िलों में सामने आए हैं. राज्य में कुल सक्रिय 1,09,139 मामलों में से रायपुर के 26,270, दुर्ग के 19,272 और राजनांदगांव के 10,639 मामले हैं. राज्य के 28 में से इन तीन ज़िलों में कुल 51.47 फ़ीसदी मामले सामने आए हैं.

छत्तीसगढ़ में हॉस्पिटल बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर राकेश गुप्ता का मानना है कि ये वो इलाक़े हैं, जो सीधे महाराष्ट्र से जुड़े हुए थे, जहाँ कोरोना का संक्रमण तेज़ी से हुआ.

डॉक्टर राकेश गुप्ता कहते हैं, “सीमा से लगे ज़िलों में कोरोना तेज़ी से फ़ैला. इसके अलावा इस पूरी बीमारी को चिकित्सा सेवा से जुड़े लोगों के भरोसे छोड़ दिया गया. जबकि यह सामाजिक जागरुकता से जुड़ा मुद्दा था, जहाँ लोगों को कोरोना से बचाव के प्रति सचेत करने की अधिक से अधिक कोशिश की जानी चाहिए थी. सरकार की सजगता थी, लेकिन सामाजिक प्रतिनिधियों को इस बीमारी, दवा, टीकाकरण जैसे मुद्दों पर लोगों को समझाने के लिए सामने आना था. उसमें उन्होंने न्यूनतम दिलचस्पी ली.”

विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि राज्य सरकार ने कोरोना को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई. पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह का आरोप है कि राजधानी रायपुर में मार्च में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच का आयोजन किया गया, जिसमें राज्य भर की भीड़ उमड़ी और इसके बाद ही कोरोना तेज़ी से फैला. राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इस आशंका से इनकार नहीं किया.

हालांकि छत्तीसगढ़ में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर महेश सिन्हा इन तमाम कारणों के अलावा राज्य के बाहर से लौटने वालों की निगरानी और जाँच में चूक को एक बड़ा कारण मानते हैं

उनका कहना है कि पिछले साल जब कोरोना के शुरुआती दौर में लोगों की वापसी हुई थी, तो गाँव-गाँव में क्वारंटीन सेंटर बनाए गए थे. सात लाख से अधिक लोगों को क्वारंटीन सेंटर में रखा गया. उनकी लोगों की जाँच की गई. लेकिन इस साल जब कोरोना के आँकड़े बढ़ने लगे, तो ऐसा कुछ भी नहीं किया गया

डॉक्टर महेश सिन्हा कहते हैं, “इस बार तो पैदल वापसी जैसे हालात नहीं थे. लोग गाड़ियों से, ट्रेनों से बड़ी संख्या में लौटे. लेकिन हमने इनकी ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया. ख़ास तौर पर होली के कारण बड़ी संख्या में लोगों की वापसी हुई. इसके अलावा बार-बार की चेतावनी के बाद भी होली पर आयोजनों में भी लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. यही कारण है कि इस बार ग्रामीण इलाक़ों से भी बड़ी संख्या में मामले सामने आ रहे हैं।

अस्पतालों में सुविधा का क्या है हाल ?

स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े जानकारों का कहना है कि कोरोना का पहले दौर झेलने के बाद इस बात की आशंका नहीं थी कि दूसरी या तीसरी लहर इतनी तेज़ी से आएगी और हर दिन आने वाले मामलों की संख्या इस बार सैकड़ों में नहीं, हज़ारों में होगी और हर दिन का आंकड़ा 15 हज़ार को पार कर जाएगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘मेडिकल इमरजेंसी’ अप्रत्याशित है, जिसके लिए निजी क्षेत्र के अस्पताल या सरकारी अस्पताल तैयार ही नहीं थे. पिछले साल अस्थायी तौर पर अस्पताल तैयार कर लिए गए थे, लेकिन समय के साथ उन अस्पतालों को बंद कर दिया गया, ताकि जहाँ अस्पताल खोले गए थे, वहाँ पुरानी सामान्य व्यवस्था शुरू हो जाए

इसके अलावा चिकित्सकों को भी छत्तीसगढ़ राज्य में दूसरे-तीसरे लहर की आशंका नहीं थी

राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर राज्यपाल से मुलाक़ात के बाद पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा, “बैठे-बैठे लोग ऑक्सीजन ले रहे हैं. बेड की व्यवस्था नहीं है. पूरे छत्तीसगढ़ में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. सरकार ने कोरोना से निपटने के लिए केवल राजनीति की. कहीं कोई व्यवस्था नहीं है।

लेकिन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का कहना है कि कोरोना काल की शुरुआत के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं में लगातार बढ़ोत्तरी की गई है. उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में प्रति 10 लाख की आबादी पर रोज़ 1435 सैंपलों की जाँच की जा रही है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत महज 929 है।

स्वास्थ्य मंत्री आँकड़ों में सुविधाओं को समझाते हुए कहते हैं कि सरकारी अस्पताल में 4517 डेडिकेटेड बेड हैं. अगला लक्ष्य 11 हज़ार ऑक्सीजन युक्त बेड का है. राज्य में 1316 आईसीयू बेड हैं, जो कोरोना मरीजों के लिए उपलब्ध हैं।

इनमें 484 सरकारी अस्पतालों में है. इसी तरह एचडीयू के 469 सरकारी बेड हैं. सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजनयुक्त बिस्तरों की संख्या 1777 हैं. कोविड केयर सेंटर की बात करें तो राज्य में 21966 बेड हैं, इनमें 3082 प्राइवेट हैं, जिनमें 2445 ऑक्सीजन युक्त हैं।

सिंहदेव का कहना है कि राज्य में ऑक्सीजन उत्पादन सरप्लस है और ऑक्सीजन सिलेंडर की भी कोई कमी नहीं है।

सिंहदेव कहते हैं, “हमने एक हज़ार आईसीयू बिस्तरों का प्रस्ताव भेजा है और मुझे उम्मीद है कि इस पर जल्दी ही काम शुरू हो जाएगा. लेकिन जब असीमित संख्या में मरीज़ आएँगे, तो कोई भी व्यवस्था कम पड़ जाएगी. फिर भी हमारे चिकित्सक और स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कर्मचारी दिन-रात एक कर के मरीज़ों के उपचार में लगे हैं।

हालांकि विपक्ष इसे नाकाफ़ी मान रहा है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता धरमलाल कौशिक का कहना है कि राज्य में कोरोना से संक्रमित भगवान भरोसे हैं और राज्य सरकार राजनीति में उलझी हुई है।

वे कहते हैं, “प्रदेश में सारे निजी अस्पतालों में कोविड के लिए 50 प्रतिशत बेड तत्काल आरक्षित किया जाना चाहिए. इसके अलावा सामुदायिक भवन और छात्रावास को अधिग्रहित करके अस्थायी अस्पताल आरंभ किया जाना चाहिए।

क्यों गहरा रहे हैं मौत के आँकड़े

स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के अनुसार पिछले साल भर में राज्य में कुल 471994 कोरोना संक्रमितों की पहचान की गई, जिसमें से 5187 लोगों की इलाज के दौरान मौत हो गई. स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के अनुसार पिछले कुछ दिनों से हर दिन राज्य में 100 से अधिक लोगों की मौत हो रही है।

लेकिन ये सरकारी आँकड़े, अस्पतालों में पड़े हुए शव और शमशान घाट की प्रतीक्षा सूची के साथ मेल नहीं खा रहे हैं. हालाँकि राज्य के स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि ज़िलों से मौत की सूचनाएँ समय पर नहीं आती हैं, इसलिए आँकड़ों में गड़बड़ी हो रही है. इसे सुधारा भी जा रहा है।

दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का आरोप है कि राज्य सरकार मौत के आँकड़े छुपा रही है और मौत के आँकड़ों पर पर्दा डाला जा रहा है।

हॉस्पिटल बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर राकेश गुप्ता का कहना है कि कोरोना के बदले हुए लक्षण के कारण संक्रमण की पहचान मुश्किल से हो रही है. इसके अलावा आरंभिक तौर पर लोग बीमारी के लक्षण के बाद भी जाँच नहीं करवा रहे हैं. यही कारण है कि उपचार शुरू करते तक देर हो जा रही है।

डॉक्टर राकेश गुप्ता कहते हैं, “अस्पताल तक पहुँचने वाले लोगों में बड़ी संख्या ऐसे संक्रमितों की है, जो गंभीर है. इनमें से भी कुछ लोग जिस स्थिति में पहुँच रहे हैं, उन्हें बचाने की हरसंभव कोशिश असफल हो रही है. पहले 10 प्रतिशत लोगों को आईसीयू की ज़रूरत होती थी, अब केवल होम आइसोलेशन में रहने वाले लगभग 20 फ़ीसदी संक्रमितों को आईसीयू में भर्ती करना पड़ रहा है।

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का कहना है कि जिस अनुपात में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ी है, उसी अनुपात में मौत के आँकड़े भी बढ़े हैं।

वे कहते हैं, “निःसंदेह राज्य में मौत के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है. छत्तीसगढ़ में प्रति 100 लोगों पर एक व्यक्ति की मौत हो रही है. हालाँकि यह देश भर में कोरोना से मौत के 1.4 प्रतिशत के आँकड़े से कम है, लेकिन यह हमारे लिए दुख और चिंता का विषय है।

टीकाकरण में आगे या पीछे?

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्धन पिछले पखवाड़े भर में कई अवसरों पर आरोप लगा चुके हैं कि छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ने कोरोना के टीकाकरण को लेकर भ्रम फैलाया, जिसके कारण राज्य में कोरोना तेज़ी से फैला और टीकाकरण की रफ़्तार भी कम हुई।

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, “ये वैक्सीनेशन पर डेढ़ महीने तक विवाद करते रहे. वैक्सीनेशन के नाम पर केंद्र सरकार को चिट्ठी पर चिट्ठी लिखते रहे. डेढ़ महीने पहले अगर वैक्सीनेशन प्रारंभ हो जाता, तो आज छत्तीसगढ़ की स्थिति अलग होती. आप पूरे मन से काम नहीं करना चाहते, आप इसमें भी राजनीति ढूँढ़ते हो।

लेकिन स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का कहना है कि बिना अंतिम रिपोर्ट के टीकाकरण को लेकर जो सवाल उन्होंने उठाए थे, उनके जवाब आज तक किसी ने नहीं दिए. उनका दावा है कि राज्य को पर्याप्त मात्रा में टीका दिया ही नहीं जा रहा है।

सिंहदेव का कहना है कि 2.92 करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ में 45 साल से ऊपर के लोगों का जो लक्ष्य है, वह कुल आबादी का लगभग 20 प्रतिशत यानी 60 लाख के आसपास है. अभी तक 45,41,450 लोगों को टीका लगाया जा चुका है।

टीएस सिंहदेव कहते हैं, “मुद्दों से भटकाने की कला में भाजपा माहिर है, अगर आप आँकड़े देखें, तो पता चलेगा कि देश में पूर्वोत्तर के 2-3 छोटे राज्यों को छोड़कर, सबसे अधिक टीकाकरण छत्तीसगढ़ में हुआ है, केंद्र के साथ बैठकर हमने जो कार्ययोजना बनाई थी, उसमें एक दिन में हम 3.5 से 4 लाख टीका लगा सकते हैं. टीका उपलब्ध था, तो इसी 2 अप्रैल को 3.26 लाख लोगों को हमने टीका लगाया. 15 लाख लोगों को टीका लगाने का काम तो आसानी से 5 दिन में किया जा सकता है।

एक बड़ा पेंच कोरोना के टीके के उत्पादन को लेकर भी है।

सामाजिक कार्यकर्ता और मज़दूर नेता नंद कश्यप सरकारी दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए बताते हैं कि सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया और ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड की हर महीने की उत्पादन क्षमता 6.5 करोड़ है, वहीं भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की उत्पादन क्षमता भारत में उपलब्ध टीके का महज 10 फीसदी है, अगर दोनों कंपनियों के टीके की हर महीने की उत्पादन क्षमता देखें, तो यह 7.5 करोड़ से अधिक नहीं होती. यानी हर दिन की आपूर्ति महज 25 लाख टीके की है।

ज़ाहिर है, 25 लाख टीके में से, देश की महज 2.11 आबादी वाले छत्तीसगढ़ को हर दिन 3.5 लाख टीका यानी कुल उत्पादन का लगभग 14 फ़ीसदी टीका तो मिलने से रहा।

नंद कश्यप कहते हैं, “मोदी सरकार के साथ एक बड़ा संकट ये है कि वो तथ्यों की अनदेखी करते हुए झूठ गढ़ती जाती है. टीका के मामले में केंद्र सरकार लगातार भ्रम पैदा कर रही है. टीका का उत्पादन ही नहीं है, तो आपूर्ति कहाँ से संभव है? सफेद झूठ गढ़ने और राज्यों को बदनाम करने के बजाए बेहतर होगा कि केंद्र अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने की कोशिश करें।

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